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डॉ. शुजाअत अली संडीलवी सिप्हरे शराफ़त के बद्रे मुनीर थे: प्रो. अनीस अशफ़ाक़

डॉ. शुजाअत अली संडीलवी सिप्हरे शराफ़त के बद्रे मुनीर थे: प्रो. अनीस अशफ़ाक़

  • डॉ. शुजाअत अली संडीलवी एक नेक इंसान और अखलाक का पैकर थे: प्रोफेसर क़मर जहां

 लखनऊ 15 अक्टूबर:  उस्तादे मोहतरम  डॉ. शुजाअत अली संडीलवी एक नेक इंसान, सदाचारी और अखलाक का पैकर   थे।  वह अपने छात्रों के प्रति दयालु और सम्मानजनक होने के साथ-साथ सहानुभूतिशील भी थे और उनके दर्द और समस्याओं को सुनते थे और उन्हें हल करने की पूरी कोशिश करते थे।  शिक्षण-अध्यापन के क्षेत्र में उच्च सिद्धांतों का पालन करने के कारण उन्हें समाज के हर वर्ग में आदर और सम्मान प्राप्त हुआ।  डॉ. शुजात अली संडेलवी के बारे में ये विचार एमेरिटस प्रोफेसर और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर एमेरिटस प्रोफेसर कमर जहां ने व्यक्त किए।  डॉ. शुजाअत अली संडीलवी मेमोरियल सोसायटी और फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से भारतीय भाषा उत्सव के तहत "डॉ. शुजाअत अली संडीलवी व्यक्तित्व एवं कृतित्व" विषयक सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर कमर जहां ने आगे कहा कि शुजात अली संडीलवी की शिक्षाएं उन्होंने उन्होंने खुद को पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि कलम के इस्तेमाल से अपने विशाल ज्ञान को अखबार के पन्नों पर उतार दिया कि कई उपयोगी और ज्ञानवर्धक लेख सामने आये।  मुझे उनकी छात्रा होने का सदैव गर्व रहेगा।

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई।  मुमताज पीजी कॉलेज की छात्रा जाकिरा और छात्र अब्दुल अजीज ने क्रमश: डॉ. शुजात अली संडेलवी द्वारा लिखित हम्द और नात प्रस्तुत किया।  डॉ. शुजात अली संडीलवी मेमोरियल सोसायटी के अध्यक्ष सोहेल काकोरवी ने स्वागत भाषण दिया।

 सोसाइटी की मैनेजर डॉ. परवीन शुजाअत ने डॉ. शुजाअत अली संडीलवी मेमोरियल सोसाइटी के लक्ष्य और उद्देश्य प्रस्तुत किये।  इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अनीस अशफाक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. शुजात अली संडीलवी छात्रों में गैर महसूस रूप से बदलाव लाते थे।  उर्दू उनकी रग-रग में बसी थी ।  वे चाहते तो आसानी से सरकार से उच्च पद प्राप्त कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई पद स्वीकार नहीं किया और सदैव ज्ञान और कला की सेवा में समर्पित रहे।  यदि उनके व्यक्तित्व को एक वाक्य में वर्णित किया जा सकता है, तो वह सिप्हरे शराफ़त के बद्रे मुनीर थे । जामिया मिलिया इस्लामिया दिल्ली के पूर्व डीन प्रोफेसर वहाजुद्दीन अल्वी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शुजाअत अली संडीलवी की शैक्षणिक और व्यावहारिक उपलब्धियों पर कई सेमिनारों की आवश्यकता है।  उन्हें अपनी उर्दू भाषा और अपनी किताबों से बहुत प्यार था।  शुजाअत अली संडीलवी मातृभाषा उर्दू के विकास, विस्तार और प्रचार के लिए व्यावहारिक प्रयासों में विश्वास करते थे। वह संडीला के थे।  जो अवध के शैक्षणिक एवं साहित्यिक माहौल का प्रतिनिधित्व करता है।  उनके व्यक्तित्व को समझने के लिए अवध को समझना जरूरी है।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन विभाग के प्रोफेसर शाफे किदवई ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि मैं उनका छात्र रहा हूं और उनकी शिक्षण शैली बहुत अनूठी थी।  उनके व्यक्तित्व का मुख्य संदर्भ बिंदु अपने छात्रों के प्रति उनकी अद्वितीय दयालुता और उस पर महारत हासिल करना था।  उन्होंने छात्रों के विकास और उनके व्यक्तित्व के विकास पर विशेष ध्यान दिया।  वह जीवन भर उर्दू के लिए सक्रिय रहे और अपनी भाषा के प्रति प्रेम की नई ऊंचाइयों की खोज करते रहे।

 अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग से आए प्रोफेसर सैयद सिराजुद्दीन अजमली ने डॉ. शुजाअत अली संडीलवी की विद्वतापूर्ण अंतर्दृष्टि को स्वीकार किया और कहा कि शुजाअत अली संडीलवी और उर्दू का विकास दोनों लाज़िम और मल्ज़ूम हैं। उनकी विशेष उपलब्धि यह थी कि उन्होंने जेल में कैदियों को उर्दू से परिचित कराया।  अवध, संडीला, काकोरी और लखनऊ के महत्वपूर्ण क्षेत्र उनके शैक्षणिक और व्यावहारिक केंद्र थे। उनके स्वभाव में बड़प्पन का एक विशेष तत्व था जो उन्हें अन्य शिक्षकों और बुद्धिजीवियों के बीच एक विशिष्ट पहचान देता था।

 विशिष्ट वक्ता के रूप में जाने-माने पत्रकार एवं लेखक अहमद इब्राहिम अल्वी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शुजाअत अली संडीलवी साहब उर्दू के मुजाहिद के नाम से जाने जायेंगे । वे उर्दू भाषा के विकास और उसके प्रचार-प्रसार के लिए जीवन भर सक्रिय रहे।  उर्दू प्रेम की भाषा है और शुजाअत साहब उसके दूत हैं।  यदि हम उनकी बौद्धिक विरासत के संरक्षक बन सकें तो यह बहुत अच्छा है।

 करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स पीजी कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डॉ. सबीहा अनवर ने कहा कि शुजाअत अली संडीलवी ने ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली की शायरी को अपने शोध का विषय चुना।  हाली की मानसिकता और उसकी मानवता का सार उन्होंने अपने खुद में पाया ।  एक शिक्षक के रूप में शुजाअत अली संडीलवी हमेशा अपने छात्रों के संपर्क में रहते थे।  उर्दू का जुनून उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था ।  वह हमेशा एक व्यावहारिक व्यक्ति थे और कम बोलते थे और सबसे कम से कम शब्दों में अपनी बात बता देते थे, लेकिन जब सक्रिय रुप से काम करने की बात आती थी तो वह सबसे आगे रहने की कोशिश करते थे, चाहे वह उर्दू के लिए आंदोलन हो या उर्दू शिक्षण ।  हर जगह उन्होंने अपनी मौजूदगी साबित की.

 इस अवसर पर फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी के सचिव जनाब आदिल हसन, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के पूर्व सचिव जनाब एस रिजवान, सज्जादा नशीन ख़ानक़ाहे काजमिया शाह ऐनुल हैदर जिया मियां, जिया अल्वी, प्रो जमाल नुसरत, मोहसिन खान, डॉ. हुमा ख्वाजा, फिदा हुसैन अंसारी, डॉ. अतीक फारूकी, प्रो.वंदना मिश्रा, बेगम शाफे किदवई, बेगम वहाजुद्दीन अल्वी, संतोष कुमार बाल्मीकि, प्रो.रमेश दीक्षित, राजीव प्रकाश साहिर, परवेज मलिकजादा, डॉ. सरवत तकी, डॉ. अब्दुर्रहीम, डॉ. मदनी अंसारी, वकार अहसन और कई अन्य प्रतिष्ठित गणमान्य उपस्थित थे।

 कार्यक्रम का संचालन खुनखुनजी गिल्स पीजी कॉलेज के उर्दू विभाग की प्रोफेसर रेशमा परवीन ने किया।  युवा नाजिम असीम काकोरवी ने उनका बखूबी साथ दिया.  कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. यासिर जमाल, मुहम्मद तौफीक और कैप्टन जीशान शकील समेत सोसायटी के सचिव मुहम्मद शकीलुद्दीन ने अपना सहयोग दिया।

 अंत में डॉ. शुजाअत अली संडीलवी के सुपुत्र सरवत परवेज़ ने सभी अतिथियों एवं उपस्थित लोगों को हृदय से धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की।

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