अक्टूबर 25, 2023, सीएसआईआर- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने आज दिनांक 25 अक्टूबर, 2023 को अपना 70वाँ वार्षिक दिवस मनाया। इस अवसर पर चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति डॉ. आनंद कुमार सिंह, समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे जबकि भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के उत्तरपूर्वी हिमालय क्षेत्र के अनुसन्धान केद्र के निदेशक डॉ. वी पी मिश्र समारोह में विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए।
इस अवसर पर सभी को 70 वे वार्षिक दिवस की शुभकामनाये देते हुए समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. सिंह ने कहा की राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान के रूप में जन्मा यह अनुसंधान संस्थान, वैज्ञानिकों एवं शोध छात्रों की वर्षों की सघन मेहनत के बाद अपनी परिभाषा को सार्थक करने में सफल रहा है। डॉ. सिंह ने देश के विभिन्न हिस्सों के किसानों द्वारा कुछ चुनिन्दा फसलों पर ही आश्रित रहने पर चिंता व्यक्त की । उन्होंने उत्तर भारत के किसानों के द्वारा गेंहू, चावल आदि जैसी कुछ चुनिन्दा फसलों पर ही ध्यान देने का उदाहरण देते हुए कहा कि आज हम जरूरत से अधिक अनाज उत्पन्न कर रहे हैं जिसके भंडारण पर ही हमें काफी अधिक खर्च करना पड़ रहा है, साथ ही किसानों की आमदनी भी काफी कम हो रही है। ऐसे में किसानों को अपनी खेती में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है ताकि अन्य फसलों की भी खेती की जा सके जिससे न सिर्फ खेती में विविधता उत्पन्न होने से उपभोक्ता को विविध उत्पाद आसानी से उपलब्ध होंगे अपितु किसानों की भी आय में वृद्धि की जा सकेगी। उन्होंने हमारे भोजन में भी विवधता लाने की बात करते हुए कहा कि आज हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट का काफी उपयोग होता है जिसके कारण शरीर को अन्य पोषण तत्व भरपूर मात्रा में नहीं मिल पाते। इसका नतीजा यह होता है कि इतनी अधिक मात्रा में अनाज उगाने के बाद भी लोग कुपोषण से ग्रसित हैं, जो कि एक विडम्बना है। उन्होंने कहा कृषि विविधता उत्पन्न करने की दृष्टि से कम उपयोग में ली जाने वाली फसलों की खेती को भी बढ़ावा दिए जाने की भी आवश्यकता है ताकि आमदनी बढ़ाने के साथ संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जा सके। ऐसे में संस्थान की जिम्मेदारी बढ़ जाती है क्यूंकि हमें न सिर्फ नवीन कृषि प्रद्योगिकियों की खोज करनी होगी बल्कि साथ ही किसानो तक उनको जल्दी और आसानी से पहुंचाने के माध्यम भी ढूँढने हों।
समारोह के विशेष अतिथि डॉ. विनय कुमार मिश्र ने संस्थान की नीव रखने वाले सभी वैज्ञानिकों/वनस्पतिशास्त्रियों को याद करते हुए कहा कि हमे इस पर विचार करना चाहिए कि हम देश के प्रति क्या कर रहे है और भविष्य में आने वाली चुनौतियों के समाधान में अपना क्या योगदान दे सकते हैं। डॉ. मिश्र ने बताया कि देश के कुछ क्षेत्रों विशेषकर उत्तर प्रदेश में किसानों की भूमि क्षमता काफी कम है जिसमें बढ़ती जनसँख्या भी एक प्रमुख कारक है. इस कारण इन किसानों की आमदनी भी कम है। देश के 45% जनसँख्या कृषि से जुडी है किन्तु उसका देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान मात्र 19% है जो कि चिंताजनक है। ऐसे में किसानों की आय बढ़ाना बहुत आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि देश की मृदा का स्वास्थ्य भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। मृदा में पोषक तत्वों की घटती मात्रा का असर फसलों की उत्पादकता के साथ-साथ उसकी पोषण क्षमता पर भी पड़ता है एवं अंत में ऐसी फसलों के उपभोग के चलते हमारी सेहत पर भी। उन्होंने ऐसे में किसान के लाभ एवं फसलों की पोषकता को ध्यान में रखते हुए अनुसन्धान पर बल दिया।
इस अवसर पर गणमान्य अतिथियों ने संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित शोध पत्रों में सबसे अधिक इम्पैक्ट फैक्टर वाले शोध पत्र को प्रो. केएन कौल बेस्ट रिसर्च पेपर प्रमाणपत्र दे कर सम्मानित किया गया । इस वर्ष यह सम्मान संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. शुचि श्रीवास्तव एवं उनकी टीम को दिया गया।
इस अवसर पर संस्थान द्वारा हल्दी में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण यौगिक कर्कुमिन के खाने योग्य कैप्सूल (क्रोमा-3) बनाने की तकनीकी को मेसर्स जेवियर मेड प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद को स्थानांतरित किया गया |संस्थान में इस तकनीकी को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. बी एन सिंह ने बताया कि इस कैप्सूल की तकनीकी संस्थान द्वारा वर्ष 2022 में विकसित की गयी थी. बाज़ार में सरल उपलब्धता हेतु इसे एक और कंपनी को हस्तांतरित किया जा रहा हैं। एनबीआरआई द्वारा हल्दी में पाए जाने वाले कर्कुमिन यौगिक को कैप्सूल फॉर्म में बेहतर जैव उपलब्धता और औषधीय गुणों के साथ एक मानकीकृत हर्बल फॉर्मूलेशन (क्रोमा-3) के रूप में तैयार किया गया है। क्रोमा -3 के हर्बल फार्मूलेशन में 10% से अधिक करक्यूमिन होता है, जो बेहतर औषधीय गुणों के साथ-साथ शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को भी मजबूत करता हैं | इस फार्मूलेशन को आयुष मंत्रालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों के अनुरूप विकसित किया गया हैं | समारोह के अंत में डॉ पी ए शिर्के द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।
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