क्या निकोटीन कैंसर का मुख्य कारण है?
- अक्सर यह निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि निकोटीन केवल तम्बाकू में पाया जाता है, और इससे कैंसर होता है। लेकिन क्या यह सच है?
लखनऊ, निकोटीन एक प्राकृतिक तत्व है जो कई पौधों, मुख्यतः तंबाकू में पाया जाता है। तम्बाकू चबाए जाने या धूम्रपान से उत्पन्न होने वाला सुकून निकोटीन की वजह से मिलता है। निकोटीन नाम पुर्तगाल में पाये जाने वाले तम्बाकू के पौधे निकोटियाना टैबैकम के नाम पर पड़ा है। पुर्तगाल में फ्रांस के राजदूत जीन निकोट डे विलेमेन ने 1560 में तंबाकू के पौधे फ्रांस भेजे और औषधीय पौधों के रूप में उनका प्रचार किया। इसी दौरान ऐसा सोचा गया कि धूम्रपान द्वारा कई बीमारियों मुख्यतः प्लेग से बचाव हो सकता है।इसके लगभग तीन सौ सालों के बाद सन 1828 में दो जर्मन केमिस्ट्स, विल्हेम हेनरिक पोसेल्ट और कार्ल लुडविग रीमैन ने तंबाकू के पौधों से पहली बार निकोटीन निकाला। 1893 में एडोल्फ पिनर और रिचर्ड वोल्फेंस्टीन ने निकोटीन की रासायनिक संरचना पहचानी और बताया कि यह सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में रहता है और पानी में घुलनशील है। 20वीं सदी तक शरीर, मुख्यतः सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर निकोटीन के प्रभावों के लिए कई अध्ययन किए जा चुके थे। धूम्रपान के दौरान निकोटीन सिगरेट के धुएँ के साथ फेफड़ों में चला जाता है। शरीर में प्रवेश करने के बाद यह निकोटीन सर्क्युलेटरी सिस्टम में पहुँच जाता है, और फिर 20 सेकंड के भीतर ही मस्तिष्क तक पहुंच जाता है, जिससे नसों में उत्तेजना उत्पन्न होती है, और आनंद का अनुभव प्राप्त होता है।क्लिनिकल अध्ययनों ने प्रदर्शित किया है कि निकोटीन का फाइन मोटर, अल्पकालिक एपिसोडिक मैमोरी और वर्किंग मैमोरी की परफ़ॉर्मेंस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निकोटीन युक्त उत्पादों का उपयोग परफ़ॉर्मेंस व चेतनता बढ़ाने, और चिंता, तनाव या अवसाद को कम करने के लिए भी किया जाता है। कई लोगों का मानना है कि तम्बाकू में मौजूद निकोटीन से कैंसर होता है। लेकिन धूम्रपान से होने वाला कैंसर निकोटीन की वजह से नहीं होता है, बल्कि सिगरेट को जलाने से निकलने वाले धुएं के कारण होता है। सिगरेट के धुएं में 7,000 से ज़्यादा कैमिकल्स होते हैं। इनमें से कम से कम 250 कैमिकल्स, जैसे हाइड्रोजन साइनाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और अमोनिया स्वास्थ्य के लिए नुक़सानदायक होते हैं। इनमें से कुछ पदार्थ तम्बाकू के पौधे में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, लेकिन ज़्यादातर हानिकारक पदार्थ केवल सिगरेट को जलाने पर ही बनते हैं।
इन नुक़सानदायक पदार्थों में कम से कम 69 पदार्थों से कैंसर हो सकता है, जिनमें मुख्य रूप से सिगरेट के धुएं में पाये जाने वाले एसिटेल्डिहाइड, एरोमैटिक एमाइन, आर्सेनिक, बेंजीन, बेरिलियम, 1,3-ब्यूटाडीन आदि शामिल हैं... ख़ासकर बेंजोपाइरीन और आर्सेनिक ने प्रायोगिक अध्ययनों में कैंसर करने की 100% क्षमता प्रदर्शित की। उपरोक्त टॉक्सिन मानवों को होने वाले कैंसर का मुख्य कारण हैं। कैंसर के सबसे आम रूप फेफड़े, ओरल कैविटी, निचले फ़ैरिंक्स, लैरिंक्स, एसोफेगस, ब्लैडर, किडनी, लिवर, बिलियरी ट्रैक्ट, पैंक्रियाज, पेट, कोलोरेक्टल के कैंसर हैं...
यूरोप में प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक़ सेकंडहैंड धूम्रपान की वजह से फेफड़ों के कैंसर के लगभग 82% मामले होते हैं। धुएं में मौजूद टॉक्सिन कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम, एथेरोस्क्लेरोसिस को भी क्षति पहुंचाते हैं, और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का खतरा लगभग 25 से 30% बढ़ा देते हैं। इनसे स्ट्रोक का खतरा 20 से 30% बढ़ जाता है। कैंसर और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के अलावा धूम्रपान से क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़, डायबिटीज़, ऑस्टियोपोरोसिस, रूमेटॉयड आर्थराइटिस, मैक्यूलर डिजनरेशन, मोतियाबिंद और गंभीर अस्थमा भी हो सकते हैं...
निकोटीन से सीधे कैंसर नहीं होता, लेकिन निकोटीन की लत पद जाती है, जिसकी वजह से व्यक्ति तंबाकू जलाने से निकलने वाले सिगरेट के धुएँ में पाये जाने वाले नुक़सानदायक पदार्थों के संपर्क में आता है। इसलिए तंबाकू के सुरक्षित विकल्पों में निकोटीन की काफ़ी कम मात्रा का उपयोग किया जाता है, ताकि धूम्रपान करने वालों को निकोटीन की कम ज़रूरत पड़े और वो सिगरेट के धुएं में पाये जाने वाले कार्सिनोजेन और अन्य नुक़सानदायक पदार्थों के संपर्क में ना आएँ। निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी, जैसे कि गम, पैच, लोजेंज, इन्हेलर, नैसल स्प्रे आदि 2009 से आवश्यक दवाओं की डब्ल्यूएचओ मॉडल सूची में मौजूद हैं।
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