उन्नति फाउंडेशन ने मनाया बच्चो के साथ गणतंत्र दिवस एवम बसन्त पंचमी उत्सव लखनऊ ,"आओ मिलकर खुशियां बांटे" मुहिम के तहत उन्नति फाउंडेशन संस्था द्वारा जानकीपुरम के पास झुग्गी झोपड़ी में बच्चो के साथ मिलकर गणतंत्र दिवस समारोह एवम बसन्त पंचमी उत्सव मनाया गया जिसका प्रारंभ पूरी टीम के सदस्यों और बच्चो के साथ राष्ट्रगान से किया गया तत्पश्चात सरस्वती माँ की पूजा अर्चना की गई ।।बच्चो के उत्साह वर्धन के लिए कुछ खेल के साथ उनके अंदर छुपी हुई टैलेंट को निखारने के लिए गायन और नृत्य का भी आयोजन भी किया गया जिसमें उन्नति स्टार्स की खोज भी की गई जिसमे लक्षमी,माया, अमन, किशन और गोपाल को उनके हुनर को देखते हुए चुना गया और उन विजेता बच्चो को इनाम के रूप में कॉपी ,पेंसिल और कुछ उपयोगी वस्तुओं का वितरण भी किया गया ।।कार्यक्रम के संयोजक सबीना और रजत ने बच्चो के हुनर को देखते हुये वहा जाकर हुनर को निखारने की बात कही ।।एक्टर अखिलेश श्रीवास्तव जी और संगीता जी ने बच्चो को मिठाई बांटी और उनके हुनर को सराहा ।।संस्था के युवा सदस्य रंजीत सिंह और सचिव शैलजा जी ने कहा इन बच्चो की प्रतिभा को निखारने के लिए यह संस्था जो भी बन सका जरूर करेगी ।। उन्नति फाउंडेशन के संरक्षक ओमकार नाथ सिंह और दीपराजी , राजेश जी और मनोज सिंह चौहान ने भी इन बच्चो के उत्साह को बढ़ाया और कहा कि जो बच्चे पढ़ना चाहते है उनकी मदद संस्था द्वारा की जाएगी ।। हर्षित,राहुल और दीपक एवम अरसद ने उत्साहपूर्वक बच्चो को कुछ ज्ञान की बाते भी बताई ।।अंत मे संस्थापक रोहित सिंह और अंतिमा सिंह ने सभी बच्चो के साथ संस्था के सभी सदस्यों की सराहना करते हुए बच्चो को प्यारे प्यारे उपहार से नवाजा ।।
-आध्यात्मिक लेख आत्मा अजर अमर है! मृत्यु के बाद का जीवन आनन्द एवं हर्षदायी होता है! (1) मृत्यु के बाद शरीर मिट्टी में तथा आत्मा ईश्वरीय लोक में चली जाती है :विश्व के सभी महान धर्म हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम, जैन, पारसी, सिख, बहाई हमें बताते हैं कि आत्मा और शरीर में एक अत्यन्त विशेष सम्बन्ध होता है इन दोनों के मिलने से ही मानव की संरचना होती है। आत्मा और शरीर का यह सम्बन्ध केवल एक नाशवान जीवन की अवधि तक ही सीमित रहता है। जब यह समाप्त हो जाता है तो दोनों अपने-अपने उद्गम स्थान को वापस चले जाते हैं, शरीर मिट्टी में मिल जाता है और आत्मा ईश्वर के आध्यात्मिक लोक में। आत्मा आध्यात्मिक लोक से निकली हुई, ईश्वर की छवि से सृजित होकर दिव्य गुणों और स्वर्गिक विशेषताओं को धारण करने की क्षमता लिए हुए शरीर से अलग होने के बाद शाश्वत रूप से प्रगति की ओर बढ़ती रहती है। (2) सृजनहार से पुनर्मिलन दुःख या डर का नहीं वरन् आनन्द के क्षण है : (2) सृजनहार से पुनर्मिलन दुःख या डर का नहीं वरन् आनन्द के क्षण है :हम आत्मा को एक पक्षी के रूप में तथा मानव शरीर को एक पिजड़े के समान मान सकते है। इस संसार में रहते हुए
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