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मदर्स डे पर इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में मिलीं दिल को छू लेने वाली कहानियां

मदर्स डे पर इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में मिलीं दिल को छू लेने वाली कहानियां

लखनऊ : कहते हैं, इस दुनिया में ममता का रिश्ता सबसे खास है और अनमोल भी। इसके लिए किसी शब्द या फिर जुबां की जरूरत नहीं पड़ती। इस रिश्ते की कोमलता तब और महसूस होती है जब मां और बच्चे दोनों के बीच ममता का सम्मान देखने को मिलता है। 

नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल इस अनूठे रिश्ते का हर वक्त गवाह भी बनता है। दिल को छू ले जानी वालीं इन्हीं कहानियों को अस्पताल ने मदर्स डे पर साझा किया है।यह रिश्ता तब और मन को स्पर्श करता है जब आपको पता चले कि कैसे एक मां अपने बच्चे का जीवन बचाती है और कैसे एक बच्चा अपने अंग देकर ममता का कर्ज चुकाता है। 

हाल ही में, उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी 54 वर्षीय सुश्री ज्योत्सना को दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में लीवर ट्रांसप्लांट कराना पड़ा। वे लीवर की पुरानी बीमारियों से पीड़ित थीं जिसकी वजह से उन्हें इस जीवन रक्षक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। यहां दाता के रूप में कोई और नहीं, बल्कि उनका 25 वर्षीय बेटा सामने आया और अपनी मां का जीवन बचाया। बेटा अंबर ने कहा, ' भगवान न करे, अगर फिर कभी जरूरत पड़ी तो मैं अपनी माँ के लिए फिर से ऐसा करूँगा।'

ज्योत्सना और अंबर की तरह राष्ट्रीय राजधानी के भी एक परिवार की ऐसी कहानी है। 55 वर्षीय सुश्री वीना करीब साल भर से किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं जिसके चलते उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था। चूंकि इसके लिए एक दाता की आवश्यकता थी तो उनकी 22 साल की बेटी बगैर किसी सोच विचार आगे आईं और फिर डॉक्टरों ने सफल ट्रांसप्लांट किया। बेटी सुमेधा (22) ने कहा, " मेरी दुनिया का सेंटर मेरी मां है। जब डॉक्टरों ने ट्रांसप्लांट के बारे में बताया, मुझे तभी पता चल गया कि हमें उन्हें बचाने के लिए कुछ भी करना होगा और देखिए, सौभाग्य से मेरा दाता के रूप में मिलान हुआ।"

अपोलो अस्पतालों में ये कहानियां सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती हैं। अपोलो अस्पताल समूह बीते 20 वर्षों से भी अधिक समय से उन 451 से भी अधिक बच्चों के लीवर ट्रांसप्लांट कर चुका है जो हृदय, लीवर, किडनी और बोन मैरो से संबंधित पुरानी स्थितियों से पीड़ित है। खासतौर पर लीवर और किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान अस्पताल ने परिवारों के आपसी प्यार को महसूस किया है बल्कि सैंकड़ों बार उसका गवाह भी बना है। अपनी सेहत की चिंता किए बगैर किशोर या फिर युवा बच्चों ने आगे आकर अपने उन मां-पिता का जीवन बचाया है जिन्हें लीवर या फिर किडनी की आवश्यकता थी। 

अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट व हेपेटोलॉजिस्ट डॉ. अनुपम सिब्बल बताते हैं, “मां और उसके बच्चों के बीच एक अलग ही संबंध होता है। हमारे यहां ऐसे अनगिनत मामले हैं जब मां अपने बच्चे की जान बचाने के लिए आगे आई तो बच्चा, मां के लिए सबसे पहले तैयार हुआ। हर सप्ताह हम इस अनमोल संबंध के साक्षी बनते हैं। जरा सोचिए, दर्द और बीमारी से परेशान अपने बच्चे को अस्पताल लाने के बाद जब वह उसे खिलखिलाते देखती है, चेहरे पर मुस्कान देखती है तो उस वक्त मां की नम आंखें और दुलार शब्दों में बयां नहीं कर सकते। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि प्यार, देखभाल, विश्वास और बलिदान के इस चमत्कार का गवाह बनते हैं। अपोलो में किए 431 पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट में से 43% दाता माताएं हैं। माताएं सबसे बड़ा दाता समूह हैं। इनके बाद पिता, दादा-दादी और परिवार के अन्य सदस्य आते हैं।"

इसी तरह इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट व किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. संदीप गुलेरिया ने अनुभव साझा किया, "ममता का रिश्ता ऐसा है जिसमें दोनों ही ओर से बराबर त्याग की भावना देखने को मिलती है फिर चाहे मां का अपने बच्चे के लिए प्यार हो या फिर बच्चे का उसकी मां के लिए। अपोलो अस्पतालों में हमने किडनी ट्रांसप्लांट के कई मामले देखे हैं जब मां और बच्चे एक दूसरे के लिए दाता बने हैं। एक डॉक्टर होने के नाते मेरे लिए सबसे बड़ा सुख मरीज को स्वस्थ होते देखना है। लेकिन, इसके साथ साथ जब मैं ममता का गवाह बनता हूं तो खुद को सम्मानित महसूस करता हूं।”

अक्सर ऐसे भी मामले मिलते हैं, जब मां सबसे बड़ी जीवनरक्षक बनती है। हाल ही में एक सात वर्षीय लड़की सुश्री अंशिका का लीवर ट्रांसप्लांट हुआ। वह पल्मोनरी लीवर और विल्सन रोग से पीड़ित थी। उसकी हालत इतनी गंभीर थी कि अस्पताल में भर्ती होने के 36 घंटे के भीतर ही ट्रांसप्लांट शुरू करना पड़ा और उस वक्त अंशिका की मां दाता के रूप में सामने आईं। इसी तरह 14 वर्षीय मास्टर अनमोल राणा का लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी हुई। वह 12 साल की उम्र से ही ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस ग्रस्त था। अनमोल की जान बचाने के लिए भी उसकी मां ने अपने लीवर का टुकड़ा दान किया। 

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. नीरव गोयल यहां तक बताते हैं, “अपोलो अस्पतालों में हम हमेशा अपने मरीजों को बीट केयर प्रदान करने में विश्वास करते हैं। एक बच्चे को अपनी मां के लिए 60% लीवर दान करना प्यार और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस विशेष बंधन को देख चिकित्सीय टीम को प्रेरणा मिलती है।"

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