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लखनऊ में दाऊजी का स्मारक बनें : राम नाईक

लखनऊ में दाऊजी का स्मारक बनें : राम नाईक

 लखनऊ के पूर्व महापौर स्वर्गीय डॉ. दाऊजी गुप्त की लखनऊ से आयोजित व्हर्च्युअल श्रद्धांजलि सभा में 19 मई 2021 को उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री राम नाईक का मुंबई से भाषण

लखनऊ के पूर्व महापौर स्वर्गीय डॉ. दाऊजी गुप्त के सम्मान में आयोजित व्हर्चुअल श्रद्धांजलि सभा के निमंत्रक डॉ. पदमेश गुप्त, श्री. रमेश गुप्त और डॉ. वर्तिका गुप्त, उनके परिवार के सभी मान्यवर तथा कोरोना के कारण आयोजित व्हर्चुअल सभा में जुड़े हुए महानुभाव, बहनों और भाइयों !

उत्तर प्रदेश का राज्यपाल के नाते 2014 से 2019 तक राजभवन में मैं हजारों नागरिकों को मिला. उनमें बार – बार कई कारणों से मैं जिन को मिलता था उसमें डॉ. दाऊजी गुप्त अग्रगण्य रहे हैं. जब मेरा राज्यपाल का कार्यकाल समाप्त हुआ. तब वे मुझे मिलने आए थे. उस समय मैं भविष्य में क्या करूंगा इस पर भी एक मित्र के नाते मेरी चर्चा हुई थी. हमारे आत्मीय संबंध बन गए थे. मुंबई जाने के बाद भी दूरभाषद्वारा हमारा संपर्क बना रहा. ऐसे मित्र के – डॉ. दाऊजी गुप्त के निधन का वृत्त जब 2 मई को प्राप्त हुआ, मुझे अतीव दुःख हुआ.

मेरी नजर में स्वर्गीय दाऊजी का वर्णन एक शब्द में करना होगा तो वे ‘सौजन्यमूर्ती’ थे. उच्च विभूषित होने के बाद भी – एम्. कॉम., एलएल. बी. और पीएच्. डी. – विद्या का अहंकार कभी बोलने में सुनाई नहीं देता था.

लखनऊ जैसे महानगर से तीन बार महापौर और एक बार विधान परिषद सदस्य के नाते जो कार्य उन्होंने किया वह निश्चित ही महत्वपूर्ण था. आम आदमी से जुड़े हुए उनके स्नेह से मैं तो आश्चर्यचकित हुआ था.

अंग्रेजों से भारत स्वतंत्र हुआ लेकिन पूर्तूगाल से गोवा मुक्त करने के लिए जो सत्याग्रह आंदोलन हुआ उसमें उन्होंने योगदान दिया. स्व. मनोहर पर्रीकर जब गोवा के मुख्यमंत्री थे और श्री. केदारनाथ सहानी माननीय राज्यपाल थे तब 2003 में उनका भव्य राजकीय सम्मान किया गया, तो माननीय राष्ट्रपति श्री. राम नाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति भवन में 2015 में सम्मान किया गया.

1975 के आपात्कालीन कालखंड में कांग्रेस सरकार ने लखनऊ के कारागृह में डॉ. दाऊजी को बंदी बनाया था. बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने उनको लोकतंत्र सेनानी का सम्मान प्रदान किया.

साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी स्वर्गीय दाऊजी का महत्वपूर्ण योगदान था. हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और तमिल के कई पत्रिकाओं में वे लिखते थे. साथही साथ अमरिका में तीन दशक पूर्व अंतर्राष्ट्रीय विश्व हिंदी समिति गठित हुई थी, उस के डॉ. दाऊजी संस्थापक अध्यक्ष थे और स्थापना के बाद 11 सम्मेलन हुए, उन सभी में उनकी सक्रीय सहभागिता रही.

मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ कि हिंदी भाषिक होते हुए भी वे तमिल में भी लिखते थे. वर्ष 2015 में तमिलनाडु सरकारने प्रथम बार ही एकमात्र गैर तमिल विद्वान के रूप में तमिलनाडु का महत्वपूर्ण सम्मान ‘पेरियार अवार्ड’ डॉ. दाऊजी को प्रदान किया.

डॉ. दाऊजी गुप्त का व्यक्तित्व और कृतित्व लखनऊ का भूषण रहा है. राजनीति, साहित्य और समाज कार्य में उनका नीजि परिवार भी उनको साथ देता था. डॉ. दाऊजी का निधन मात्र उनके परिवार का ही नहीं तो लखनऊ के सार्वजनिक जीवन की अपुरणीय क्षति है.

स्व. दाऊजी का सामाजिक योगदान सभी के लिए, विशेष रूप से लखनऊवासियों के लिए हमेशा यादगार रहेगा. उनका एक स्मारक लखनऊ में होना चाहिये ऐसा मेरा सुझाव है. यह स्मारक बनाने के लिए मैं भी योगदान देने के लिए तैयार हूं. उस स्मारक के माध्यम से स्व.दाऊजी की स्मृति हमेशा जीवित रहेगी.

मै दिवंगत डॉ. दाऊजी की आत्मा की शान्ति की कामना करते हुए उनके शोक संतप्त परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं.

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