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'यथार्थ गीता’ सहजता से ला सकती है समाज में भाईचारा- परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद


'यथार्थ गीता' सहजता से ला सकती है समाज में भाईचारा- परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद


इटावा । गीता योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख की वाणी है। आदिशास्त्र श्रीमद्भगवतगीता का यथावत भाष्य यथार्थ गीता है। सरकारी योजनाओं में अरबों-खरबों खर्च कर और सब्सिडी से भी समाज में जो भाईचारा स्थापित नहीं हो पा रहा है, वह यथार्थ गीता के माध्यम से सहजता से प्राप्त हो जाएगा। यह कहना है यथार्थ गीता के रचनाकार परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज का। 


कल विशेष विमान से सैफई हवाई पट्टी उतरकर बाहुरी आश्रम पहुँचे स्वामी अड़गड़ानंद से आशीर्वाद लेने भक्तो का तांता लगा रहा।  उन्होंने कहा कि गीता हमें जीवन का सही रास्ता दिखाती है और ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती है। चूंकि योगेश्वर भगवान कृष्ण को साधारण रूप में व्यक्त किया गया है, इसलिए इसे यथार्थ गीता कहा जाता है। इसकी रचना में गुरुजी की दैवीय दिशा सहायक रही। धर्म को समझने के लिए आदिशास्त्र श्रीमद्भागवत के यथावत भाष्य को संकलित करने के लिए ही इसकी रचना की गई। भारत धर्मप्राण देश है और यहां की प्रत्येक समस्या के मूल में धार्मिक भ्रांतियां हैं, जिनका समाधान भी धार्मिक होना चाहिए।


यथार्थ गीता में भगवान श्रीकृष्णोक्त के वही सात सौ श्लोक हैं, जो गीता में हैं। साथ ही 25 प्रश्न ऐसे हैं, जिससे यथार्थ गीता को स्पष्ट किया गया है। धर्म क्या है, युद्ध क्या है, वर्ण क्या है, वर्णशंकर क्या है, शरीर यात्रा क्या है, मनुष्य शुद्ध है अथवा अशुद्ध, पाप क्या है, पुण्य क्या है, भजन की जागृति क्या है जैसे ज्वलंत सवालों के सम्यक समाधान के लिए ही यथार्थ गीता की रचना की गई है।


सन्तो के बारे में उन्होंने कहा कि संत शब्द सत शब्द के कर्ताकारक का बहुवचन है। अर्थ है साधु, संन्यासी, विरक्त या त्यागी पुरुष या महात्मा। संत उस व्यक्ति को कहते हैं, जो सत्य आचरण करता है तथा आत्मज्ञानी है। वह संत ही नहीं हैं, जो आपराधिक मामलों में जेल में हैं। संन्यासियों के वेश में वे अपराधी ही हो सकते हैं। संतों को अपने आचरण का भी ख्याल रखना होगा, क्योंकि कुछ संतों पर गलत आरोप भी लग जाते हैं।


भक्तो को दिए प्रवचन में स्वामी अड़गड़ानंद परमहंस ने कहा कि प्रवचन सुनाते हुए महाराज ने कहा कि सुख देने वाले को सुख और दुख देने वाले को दुख मिलता है। जन्म जन्मांतर की तपस्या करने वाले ध्रुव को बाल रूप में ही परमपिता का दर्शन मिल गया था। परम भाव में लीन होने वाली आत्मा में ही परमात्मा की कृपा हो जाती है। महराज जी ने भक्तों को भटकाव से परे रहने की सलाह देते हुए कहा कि धर्म एक ही है। सभी में एक ही परमात्मा का निवास है। आजीवन बच्चों की मन की स्थिति में रहने वाले काम, क्रोध, लोभ मोह जैसे विकारों से दूर रहते हैं। शोक-संताप से दूर रहने वाले प्रत्येक युग में रामराज्य की अनुभूति करते हैं। बच्चों को मन का सच्चा बताते हुए कहा कि जिनका मन कोमल व कृपालु है उनका जीवन अनुकरणीय व धन्य है। 


श्रीमद्भागवत गीता की शाश्वत व्याख्या करने वाले स्वामी अड़गड़ानंद ने साक्षी समाचार से बातचीत में कहा कि उन्होंने इस महाग्रंथ के विभिन्न भाषाओं में इसीलिए यथार्थ गीता के नाम से लिखा और आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की, जिससे कि गीता का ज्ञान घर घर तक पहुंच सके और लोगों का कल्याण हो सके।


इस अवसर पर आशीष बाबा, तुलसी बाबा,भावानन्द, आशीष तिवारी इटावा, सन्तोष बाबा मौजूद रहे


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