19 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया
लखनऊ , कल 19 नवंबर अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस को पति परिवार कल्याण समिति ने पुरुष सम्मान उत्सव के रूप में मनाया| इस दिन साप्ताहिक मीटिंग स्थल लक्ष्मण पार्क में केक काटकर उत्सव का शुभारंभ किया और उसके उपरांत गीत नाटक आदि मनोरंजन कार्यक्रम के द्वारा पुरुषों के कार्यों को सम्मान दिया और जनमानस में इसके प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न स्थानों - लक्ष्मण पार्क, जी.पी.ओ., विधान सभा के सामने, फन मॉल के सामने व शीरोज़ गोमतीनगर पर जाकर रात 9 बजे समाप्त किया जहाँ वीरांगनाओं/मर्दानियों के साथ भी पुरुष दिवस मनाया गया| इस यात्रा के दौरान, स्वयं मेहनत कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले समाज को दिशा देने वाले वाह देश को समृद्ध बनाने वाले पुरुषों को सम्मानित भी किया गया| आज के इस यात्रा की फोटो संलग्न हैं|
पुरुष किसी भी देश का समाज का व परिवार का महत्व अंग होता है वह अपने कर्तव्य का निर्वहन बिना किसी प्रचार प्रसार के मौन रूप से करता रहता है उसके योगदान को सम्मान मिलना ही चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय पूर्व दिवस से बेहतर कोई और दिन हो ही नहीं सकता|
प्रस्तावना
19 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है | यह लगातार 1992 से मनाया जा रहा है | सबसे पहले इसे 7 फ़रवरी को मनाया गया था । फिर 1999 में इसे दोबारा त्रिनिदाद और टुबैगो में शुरू किया गया | तब से प्रत्येक वर्ष 19 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है |
पुरुष का दुख
समाज की लगातार बढती उम्मीदों में खरा उतरना पुरुषों के लिए बहुत मुश्किल हो गया है | ऐसे में कड़ी महनत एवं घर-परिवार एवं समाज के प्रति कर्त्तव्य निष्ठां को निरंतर पूरा करने के बावजूद भी पुरुषों को तिरस्कृत एवं घृणात्मक दृष्टि से देखा जाना, पुरुषों के मानसिक एवं एहम को बुरी तरह चोट पहुंचाता है | जिसकी वजह से कुछ पुरुष जो की तिरस्कार एवं जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर रहता है | चाहे वो किसी भी पद पर हो या किसी भी पेशे हो ।
सरकारी आंकड़े
आंकड़े चीख चीख कर बोल रहे हैं की पुरुषों को भी बचाओ क्योंकि महिलाओं से दो गुना से भी ज्यादा पुरुष आत्महत्या कर रहे हैं | किन्तु पुरुषों की आवाज़ बढ़ते कानूनी आतंकवाद में जैसे दब कर रह गयी है | पिछले वर्ष सन 2015 में भी तकरीबन 65000 पुरुषों ने आत्महत्या की, आंकडे बताते हैं कि अधिकतर मामलों में पति पहले इस धरती से विदा होता है और पत्नी बाद में । वजह कहा जाता है कि उस पर मानसिक तनाव अधिक रहता है घर का भी और बाहर का भी । ज़्यादातर पुरुष अपना दुख किसी से साझा नहीं करते और अंदर अंदर ही मरते रहते है । जिसकी वजह से वो मानसिक और शारीरिक बीमारियो से घिर जाते है ।
सबसे बड़ा दुख
देश में महिलाओं, बच्चों, जानवरों, पेड़-पौधों आदि तक के संरक्षण के लिए नियम है कानून है प्रावधान है मंत्रालय है । किन्तु पुरुषों के संरक्षण के लिए न कोई नियम है न कोई कानून है न कोई प्रावधान है न कोई मंत्रालय है जिसपर खड़े होकर वो अपने उपर हो रहे अत्याचारों, भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठा सके |
क्यों मनाया जाता है
दुनियां भर में परिवार, समाज, देश, विश्व के लिए पुरुषों द्वारा किये जा रहे कार्य और उनके योगदान की सराहना एवं आभार व्यक्त करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है । पुरुष अपने परिवार, दोस्त, समुदाय, देश आदि के लिए दिनभर कुछ न कुछ करते रहते है । कभी बेटा, कभी भाई, कभी पति, कभी पिता, कभी दोस्त आदि बनकर प्रत्येक दिन बलिदान करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस समाज में पुरुषों द्वारा किये जा रहे त्याग व बलिदान की सराहना का दिवस है। अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का उद्देश्य लिंग संबंधों में सुधार, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, सकारात्मक पुरुष मॉडल की भूमिका पर प्रकाश डालना है। पुरुषों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना इसमें शामिल है। इस दिवस का उद्देश्य पुरुषों के खिलाफ हो रहे भेदभाव को समाज के सामने लाना है । जब घर के बाहर महिला को उसके काम से पहचान व् सम्मान मिल रहा है तो घर के अन्दर पुरुष को भी उसके काम के लिए पहचान व सम्मान मिलना चाहिए | पुरुष बाहर से कितना भी कठोर हो पर उसके अन्दर भी एक दिल होता है, जो दुखता भी है ओर तड़पता भी है । घर के बहुत सारे कामों में पुरुष का योगदान होता है | जो भी हो काम के लिए पहचान व सम्मान हर् पुरुष को मिलना चाहिए । आज महिला ससक्तिकरण के नाम पर काफी कानून है लेकिन पुरुष के उत्थान के लिए कोई कानून नहीं है । महिला को पूरा अधिकार है इन कानूनों का इस्तेमाल करने का जबकि पुरुष के पास तो इनसे बचने के लिए भी कानून नहीं है ।
कैसे मनाया जाता है
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर कुछ पुरुषों के संगठनों कई स्थानों पर सेमिनार, सम्मेलनों आदि का आयोजन करते है । शांतिपूर्ण प्रदर्शन व जुलुस का आयोजन भी होता है। कुछ शहरों में कर रैलि का आयोजन भी होता है । कुछ शहरों में पुरुष आधारित फिल्मों आदि का भी आयोजन होता है ।
एक कड़वा सच
अब पूरे विश्व भर में पुरुषों द्वारा किये गए कामों को मुख्य रूप से घर में , शादी को बनाये रखने में , बच्चों की परवरिश में , समाज में निभाई जाने वाली भूमिका में, सम्मान की मांग उठी है | पुरुष और स्त्री परिवार की गाडी के दो पहिये हैं | दोनों का सही संतुलन और वर्गीकरण एक खुशहाल परिवार के लिए बेहद जरूरी होता है | क्योंकि परिवार समाज की इकाई है इसलिए परिवार का संतुलन समाज का संतुलन है | इसलिए स्त्री या पुरुष दोनों के काम का सम्मान किया जाना बहुत जरूरी हैं | काम का सम्मान उसे महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाता है और उसे बेहतर काम करने के लिए प्रेरित भी करता है | पुरुष घर के अन्दर अपने कामों के प्रति सम्मान व् स्नेह की मांग कर रहा है | कहीं न कहीं ये बदलते समाज की सच्चाई है | पहले महिलाएं घर के काम देखती थी और और पुरुष बाहर के, खास तोर से धन कमाना | पुरुष को घर के बाहर सम्मान मिलता था इसलिए स्त्री को घर में बच्चो व् परिवार द्वारा ज्यादा सम्मान स्वीकार कर लेता था | समय बदला, परिस्तिथियाँ बदली | आज घरों में जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों नौकरी कर रहे हैं | दोनों को बाहर सम्मान मिल रहा है | घर आने के बाद जहाँ स्त्रियाँ रसोई का मोर्चा संभालती हैं वही पुरुष बिल भरने , घर की टूट फूट की मरम्मत कराने , सब्जी तरकारी लाने का काम करते हैं | पढे लिखे पुरुषों का एक बड़ा वर्ग इन सब से आगे निकल कर बच्चों के डायपर बदलने, रसोई में थोडा बहुत पत्नी की मदद करने और बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की नयी भूमिका में नज़र आ रहा है | पर कहीं न कहीं उसे लग रहा है की बढ़ते महिला समर्थन या पुरुष विरोध के चलते उसे उसे घर के अन्दर या समाज में उसके कामों के लिए सम्मान नहीं मिल रहा है | ये भी एक बड़ा चिंता का विषय है की एक महिला हाउस वाइफ बन कर सम्मान से जी सकती है पर एक पुरुष हाउस हसबेंड बन कर सम्मान से नहीं जी सकता । उसे कोई सम्मान से नहीं देखता , न समाज , न परिवार , न पत्नी और न बड़े होने के बाद बच्चे |
जरूरत
मर्द को दर्द नहीं होता बहुत कहते ओर सुनते है । पर फिर भी 2015 में 65000 पुरुषो ने आत्महत्या की | पूरे दिन जानवर की तरह काम करने वाला पुरुष कब अपना ही बोझ उठाने लायक नहीं रह पाता, ये उसे भी पता नहीं होता | ऐसे में जरुरत है की पुरुषों पर उत्पीडन को रोकने की और पुरुषों को भी समाज में पहचान देने की | जरुरत है, ”पुरुष आयोग” की |
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