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उर्दू एकेडमी यौम-ए-उर्दू का एहतिमाम करे: मौलाना खालिद रशीद

उर्दू एकेडमी यौम-ए-उर्दू का एहतिमाम करे: मौलाना खालिद रशीद



  • गनी तालीमी मरकज के अन्र्तगत इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया में यौम-ए-उर्दू आयोजित


लखनऊ, 09 नवम्बर।


अल्लामा इकबाल के जन्मदिवस के अवसर पर गनी तालीमी मरकज के अन्र्तगत इस्लामिक सेन्टर आफ इण्डिया में अन्तर्राष्ट्रीय यौम-ए-उर्दू आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन सेन्टर के चेयरमैन मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली इमाम ईदगाह लखनऊ ने किया। अध्यक्षता अब्दुन नसीर नासिर ने की। जलसे का आरम्भ कारी तरीकुल इस्लाम ने कुरान मजीद की तिलावत से किया।    इस अवसर पर मौलाना नईमुर्रहमान सिद्दीक़ी प्रधानाचार्य दारूल उलूम फरंगी महल ने ‘‘उर्दू है जिसका नाम’’ के विषय पर अपना लेख़ पढ़ा। गुफरान नसीम, अदील अहमद सिद्दीक़ी, मो0 शुएैब एडवोकेट, मो0 फारूक खाॅ, मो0 उमर, संदीप पटेल ने अपने अपने विचार प्रकट किये। मौलाना मो0 मुश्ताक़ की दुआ पर जलसे का अन्त हुआ।


जलसे में मौलाना खालिद रशीद ने अल्लामा इकबाल की जिन्दगी के हालात बताते हुए कहा कि उनका जन्म 9 नवम्बर 1877 को सियाल कोट में हुई। उनके वालिद शेख़ नूर मुहम्मद थे। वह कश्मीर के सपरो ब्रहम्णों की नस्ल से थे। अल्लामा की शिक्षा दीक्षा सियाल कोट, कैम्ब्रिज विश्वविधालय, इंग्लिस्तान, म्यूंख विश्वविधालय, जर्मनी, गर्वनमंेट विश्वविधालय लाहौर पाकिस्तान और हाई डलबर्ग विश्वविधालय मे हुई। वह फिलास्फर, शायर, अदीब मुफक्किर, राजनैतिक और अधिवक्ता थे। उनके कलाम के मजमूऐ असरार खुदी, रमूज बेखुदी, प्याम मश्रिक, बांग दरा, जबूर अजम, जावेद नामा, बाल जिब्रील, जरब कलीम और अरमगान हिजाज हैं। उनके उर्दू कलाम का मजमूआ कुल्लियात-ए-इकबाल’’ के नाम से मशहूर है। उन्होने फारसी, उर्दू और अंग्रेजी में किताबें लिखी। अल्लामा की वफात 21 अप्रैल 1938 को लाहौर में हुई और वहीं शाही मस्जिद के पहलू में दफन हुए।


मौलाना फरंगी महली ने कहा कि अल्लामा इक़बाल अपने मुल्की व मिल्ली तरानों की वजह से बहुत मशहूर हुए। मौलाना फरंगी महली ने यौम-ए-उर्दू के मौके़ पर निम्नलिखित माॅगें कीः


(1) उर्दू एकेडमी हर साल यौम-ए-उर्दू  का एहतिमाम करे। (2) उर्दू जबान कक्षा 1 से कक्षा 10 स्कूलों में अनिवार्य की जाए। (3) प्रदेश सरकार के सब दफ्तरों और विभागों में उर्दू अनुवादकों को नियुक्त किया जाए और उनसे अनुवाद का ही काम लिया जाए। (4)सरकारी दफ्तरों और अदालतों में काम काज की जबान उर्दू भी घोषित की जाए। (5)विधान सभा, राज भवन, सरकारी दफ्तरों, इमारतों, बस अड्डों, सड़कों और चैराहों के नाम उर्दू में भी लिखे जायें। (6) सरकारी ऐलान उर्दू में भी प्रकाशित किये जायें। (7) रकारी विज्ञापन की पाॅलीसी उर्दू अखबारों के लिए आसान की जाए। (8) मुअल्लिम उर्दू की समस्याओं को शीर्घ से शीर्घ हल किया जाए। (9)उर्दू उदबा, शुआरा, अध्यापाकों, पत्रकारों को उनकी सेवाओं के लिए एवार्ड दिये जायें। (10)उर्दू अकादमी और फखरूुद्दीन अली अहमद कमेटी की ग्राँट में कम से कम दो गुना वद्धि की जाए।


मो0 गुफरान ने अल्लामा इकबाल की शायरी और उनके पैगाम से सबक लेने पर जोर दिया। उन्होने अल्लामा के तराना हिन्दी की अहमियत पर रौशनी डाली।


मौलाना नईमुर्रहमान सिद्दीक़ी प्रधानाचार्य दारूल उलूम फरंगी महल ने अपने लेख में कहा कि हिन्दुस्तान के संविधान के शेड्यूल 8 की (18) राष्ट्रीय जबानों में बोलने वालों की संख्या के ऐतिबार से उर्दू 6 नम्बर पर है। जबकि हकीकत यह है कि इन जबानों में देश की जबान उर्दू ही है। यह देश के हर हिस्से में बोली और समझी जाती है।


उन्होने अपने लेख में उर्दू जबान व अदब की हिफाजत के लिए निम्नलिखित सुझाव दियेः


 ध् अगर आपके बच्चे अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं तो आप उनकी उर्दू तालीम के लिए घर पर इंतिजाम कीजिए।  ध् घर पर कम से कम एक उर्दू अखबार जरूर मंगवाइये। ध् बच्चों के लिए उर्दू कहानियों की किताबें खरीद कर लाइये।  ध् अपने और घर के अन्य लोगों के लिए उर्दू किताबें खरीदये।  ध्अपनी और अपने घर की औरतों व बच्चों की मादरी जबान सरकारी कागजात में उर्दू ही लिखवाइये।  ध् उर्दू जबान व अदब को बढ़ावा देने की कोशिश कीजिए।


अदील अहमद सिद्दीक़ी ने कहा कि आज हम सब उर्दू वालों को अपने अंदर झाकना चाहिए कि हम उर्दू को बढ़ावा देने और उसकी हिफाजत के लिए क्या कर रहे हैं। उन्होने कहा कि माता पिता की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों की उर्दू शिक्षा का इंतिजाम करें।


मो0 फारूक खाॅ, मो0 उमर, मो0 शुएैब अधिवक्ता और संदीप पटेल ने उर्दू जबान व अदब की हिफाजत पर जोर दिया।
गनी तालीमी मरकज़ के सरबरार अब्दुन नसीर नासिर ने सदारती तकरीर की। उन्होने कहा कि उर्दू जबान को आम किया जाए। अपने घर में उर्दू तालीम का इंतिजाम किया जाए। दुकानों, कार्यखानों और अपने घरों के साइन बोर्डों और नेम प्लेटों पर उर्दू जरूर लिखवाये।


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