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क्रोनिक किडनी बीमारी का इलाज कर उसे नया जीवन दिया

क्रोनिक किडनी बीमारी का इलाज कर उसे नया जीवन दिया



  • लॉकडाउन के दौरान रीजेंसी सुपर स्पेशलिटी, लखनऊ ने सिद्धार्थनगर के एक 12 साल के लड़के को लास्ट स्टेज क्रोनिक किडनी बीमारी का इलाज कर उसे नया जीवन दिया

  •  कोरोनोवायरस महामारी में लॉकडाउन की कई चुनौतियों के बावजूद रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने इसके लिए तत्काल कदम उठाए और गंभीर रूप से बीमार मरीज का इलाज किया।

  • लड़के को जब भर्ती कराया गया था तो उसे कमजोरी, उनींदापन, बार-बार उल्टी आना, शरीर पर सूजन और गंभीर रूप से बीमार था।

  • लॉकडाउन के कारण मरीज हॉस्पिटल जल्दी नहीं पहुँच सका । वह हाई लेवल क्रिएटिनिन के साथ 41.49 mg/dl (नार्मल <1 mg/dl होती है।)  आया  जो कि उसकी ज़िन्दगी के लिए इस उम्र में खतरनाक था।


लखनऊ: लखनऊ में रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल एडवांस रीनल प्रोसीजर के मल्टिटयूड को परफॉर्म करने के लिए जाना जाता है।  हॉस्पिटल ने गंभीर रूप से बीमार 12 साल के बच्चे को जीवन दान दिया जो एक्यूट यूरिनरी रिटेंशन के साथ ख़राब किडनी फंक्शनिंग से पीड़ित था क्योंकि वह पोस्टीरियर यूरेथ्रल वाल्व (PUV) से पीड़ित था जो जन्म से ही मौजूद डिसऑर्डर होता है। रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के रीनल साइंस के डायरेक्टर, एमडी, डीएम (नेफ्रोलॉजी) डॉ दीपक दीवान ने डॉक्टरों की टीमको लीड किया। उन्होने अपनी एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्किल दिखाई और कोरोनावायरस पैंडेमिक लॉकडाउन की कई चुनौतियों के बावजूद गंभीर रूप से बीमार बच्चे के इलाज के लिए तत्काल कदम उठाये।


हॉस्पिटल में भर्ती होने पर लड़के मास्टर ऋतिक दुबे को तुरंत हेमोडायलिसिस के लिए फेमोरल एक्सेस (2 सेसन) के जरिये भेजा गया, इसके बाद IJVC (गर्दन लाइन) इंसर्शन, ब्लड ट्रांसफ्यूजन एरीथ्रोपोईएटिंग इंजेक्शन (यह वह हार्मोन होता है जो बोन नैरो को रेड ब्लड सेल्स बनाने के लिए उत्तेजित करता है।) और दूसरे सिम्पटोमैटिक ट्रीटमेंट किये गए। हेमोडायलिसिस एक विशेष फिल्टर का उपयोग करता है जिसे डायलाइज़र कहा जाता है यह ब्लड से अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त तरल पदार्थ को हटाता है। डायलाइज़र एक हेमोडायलिसिस मशीन से जुड़ा होता है। अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को छानने के लिए ब्लड को डायलाइज़र में एक ट्यूब के माध्यम से पंप किया जाता है। फ़िल्टर्ड ब्लड फिर शरीर में एक और ट्यूब के माध्यम से जाता है। यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है और कुछ महत्वपूर्ण मिनिरल्स जैसे पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम और बाइकार्बोनेट के बैलेंस को बनाये रखने में मदद करता है।


रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के रीनल साइंस के डायरेक्टर, एमडी, डीएम (नेफ्रोलॉजी) डॉ दीपक दीवान ने कहा, " ऋतिक को हेल्थ कंडीशन की सीरीज एक साथ एडमिट किया  गया था जिसमें कमजोरी, उनींदापन, बार-बार उल्टी आना, खाना न खाना,  शरीर पर सूजन और साँस लेने में परेशानी शामिल था। क्योंकि मरीज लॉकडाउन के कारण हॉस्पिटल जल्दी नहीं पहुँच पाया, उसकी कंडीशन हाई लेवल क्रिएटिनिन  41.49 mg/dl (नार्मल<1 mg/dl होती है।) थी जोकि उसकी ज़िन्दगी के लिए इस उम्र में खतरनाक थी। लेकिन हेमोडायलिसिस के बाद उसकी कंडीशन कुछ ठीक हुई। उसे हर हफ्ते में दो बार हेमोडायलिसिस  कराने की सलाह पर डिस्चार्ज कर दिया गया। उसके ए वी एफ( (परमानेंट डायलिसिस के लिए आर्टेरियोवेनस फिस्टुला- एक्सेस) को यूरोलॉजी टीम के साथ एमर्जेन्सी प्रोसीजर के अंडर में किया गया। इसलिए हम सलाह देते हैं कि सभी क्रोनिक किडनी की बीमारी वाले मरीज को रेगुलर चेकअप डाक्टरों से कराते रहना चाहिए और जो हेमोडायलिसिस पर हैं उन्हें भी शेड्यूल के अनुसार अपनी डायलिसिस कराते रहने की सलाह दी जाती है नहीं तो ऐसे मरीज गंभीर हालत में एमरजेंसी सिचुएशन में पहुँच सकते हैं।"


 डॉ दीवान ने आगे कहा, " “कभी-कभी बॉडी के तरल पदार्थ, इलेक्ट्रोलाइट, अपशिष्ट प्रोडक्ट्स और मिनिरल बैलेंस में ट्रीटमेंट के दौरान तेजी से बदलाव होते हैं यह हेमोडायलिसिस ट्रीटमेंट में समस्या खड़ी कर सकता है।  मांसपेशियों में ऐंठन और हाइपोटेंशन - ब्लड प्रेशर में अचानक गिरावट - दो सामान्य साइड इफेक्ट हैं। हाइपोटेंशन एक बच्चे को सिरदर्द के साथ कमजोरी, चक्कर आना या मतली महसूस करा सकता हैं डायलिसिस प्रिस्क्रिप्शन और जिस स्पीड पर डायलाइज़र से ब्लड  फ्लो कर रहा है, यह जानकार हम इलाज कर सकते हैं। माता-पिता या कोई गार्जियन बच्चे में यह साइड इफेक्ट होने से रोकने में मदद कर सकता है अगर बच्चे को प्रॉपर डाइट, लिमिट लिक्विड इन्टेक और सभी दवाएं, जैसे डायलिसिस शेड्यूल के दौरान बतायी गयी होती है, देते रहें। हेमोडायलिसिस पर रह रहे व्यक्ति को कौन सा खाना खिलाएं जिससे उसकी लाइफ क्वॉलिटी इम्प्रूव हो और अन्य समस्याएं न हो तो इस बारें में पढ़ें।"


किडनी फेल होने वाले बच्चों को एनीमिया, इन्फेक्शन और सबसे महत्वपूर्ण ग्रोथ रेटार्डेशन और बोन प्रोब्लेम्स (रेनल ओस्टोडिस्ट्रॉफी) जैसी कॉम्प्लीकेशंस के लिए ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है। यह कॉम्प्लीकेशंस डैमेज्ड किडनी की उस हार्मोन को बनाने की असमर्थता के कारण होता है जो बॉडी को रेड ब्लड सेल्स बनाने में मदद करती है, इम्युनिटी कम होना और नुट्रिएंट्स, मिनरल्स का बैलेंस न होना और वह हार्मोन जो हड्डियों के नार्मल ग्रोथ को रोकते हैं, इस कारण से भी कॉम्प्लीकेशंस होती है। इन  समस्यायों को होलिस्टिक ट्रीटमेंट के 4 Ds, क्वॉलिटी डायलिसिस, प्रॉपर डाइट, रेगुलर डॉकटरों की कंसलटेशन और समय पर ड्रग्स का देना, के जरिये एड्रेस किया जाता है।


क्रोनिक किडनी बीमारी ,किडनी फेल होने के अंतिम चरण (स्टेज V) को जन्म दे सकता है, जो भारत में ज्यादातर होता है। NCBI (द नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी सूचना)) के अनुसार, भारत में लगभग 220,000 लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत,वर्तमान में, केवल 7500 किडनी ट्रांसप्लांटेशन 250 किडनी पर ट्रांसप्लांटेशन सेंटर पर किए जाते हैं। रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में में सबसे बड़ा टेरटरी केयर सेंटर है। यह किडनी फेल वाले कई मरीजों को डेली बेसिस पर सेवा कर रहा है। इसके अलावा जिन्हे रीनल ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है वह सर्विस भी हम देते हैं।


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