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मीडिया वह शक्तिशाली हथियार है जिसकी ताकत से विश्व को बदला जा सकता है!


मीडिया वह शक्तिशाली हथियार है जिसकी ताकत से विश्व को बदला जा सकता है!


2 नवम्बर – पत्रकारों पर होने वाले अपराधों से दण्डमुक्ति समाप्त करने के __विरोध में यूएन अंतरराष्ट्रीय दिवस


लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता जगत के बन्धुओं को वोटरशिप अधिकार कानून बनाने का संकल्प आज के महान दिवस पर लेना चाहिए– विश्वात्मा भरत गांधी


संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2013 में 68वें अधिवेशन के दौरान प्रत्येक वर्ष 2 नवम्बर को इंटरनेशनल डे टू इंड इन्प्युनिटी फॉर क्राइम्स अगेंस्ट जर्नलिस्ट अर्थात “पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए दण्डमुक्ति समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस” के रूप में मनाने का की घोषणा की थी। 2 नवम्बर को इस दिवस के रूप में चुनने का कारण यह है कि इस दिन फ्रॉस के दो रेडियो पत्रकार क्लाउदे वेरलोन और गिसिलेन दुपोंत की उत्तरी माली में अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी। महासभा में पारित किए गए प्रस्ताव में सभी सदस्यों से पत्रकारों के खिलाफ किए गए अपराध से दंडमुक्ति समाप्त करने का आह्वाहन किया गया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पिछले एक दशक में 700 से अधिक पत्रकार जनता के लिए समाचार और जानकारी एकत्रित करने में मारे जा चुके हैं और पिछले एक दशक में मीडिया कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रतिबद्ध दस में से एक मामलों में दोषी को सजा मिली है। इस तरह की दंडमुक्ति पत्रकारों के खिलाफ अपराध को बढ़ावा देती है। इस दिवस का उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पत्रकारों के विरुद्ध किए जा रहे अपराध को रोकने के प्रति जागरूक करना और कानून बनाने के लिए प्रेरित करना है।


दुनिया भर में, पत्रकार अक्सर उन सभी मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिए अत्यधिक व्यक्तिगत जोखिम का सामना करते हैं जो सभी समाजों में व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करते हैं। वे दुर्वयवहारों और भ्रष्टाचार पर प्रकाश डालते हैं, अंतर-देशीय आपराधिक संगठनों द्वारा उठाए गए खतरों को उजागर करते हैं और झूठे कथनों को फैलाने वाले प्रतिकूल जानकारी और प्रचार का पर्दाफाश करते हैं। ये प्रयास लोकतंत्र की मजबूती में अनिवार्य भूमिका निभाते हैं और दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों को भी कमजोर करते हैं। उनके पेशे के कारण, पत्रकारों को अक्सर उन लोगों से खतरा होता है जो उन्हें शांत करना चाहते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में, पत्रकारों के खिलाफ अपराध अदंडित ही रह जाते हैं। सीरिया में, स्थानीय और विदेशी पत्रकार दोनों पर ही नियमित रूप से हमले किये जाते हैं और उनकी हत्या कर दी जाती है जबकि वे संघर्ष पर रिपोर्ट कर रहे होते हैं। वेनेजुएला में, सरकार मनमाने तरीके से मीडिया आउटलेटस को तथ्यों की रिपोर्ट करने पर, या ऐसी संपादकीय लाइन को बनाए रखने, जो शासन की आलोचना करती हो, इनके परिणामस्वरूप उन्हें दण्ड के अन्तर्गत जेलों में बंद कर देती है। सुरक्षा बल और हथियारबंद “कोलाईटिवोस” जिन्होंने इस साल की शुरुआत में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान पत्रकारों को परेशान और शारीरिक रूप से हमला किया, उन्हें अदंडित छोड़ दिया गया।


इराक में, मीडिया कर्मियों ने डराने, मौत की धमकी और उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्ट की। सूडान में, सरकार दंड से मुक्ति के साथ पत्रकारों को गिरफ्तारी, उत्पीड़न और धमकाने वाली है। यूगांडा में, सरकारी अधिकारियों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ उनकी दखलंदाजी को तेज कर दिया है, जिसमें पत्रकारों को धमकाया जाना शामिल है। नाइजीरिया और दक्षिणी सूडान में, पुलिस और अन्य अधिकारियों के लिए उत्तरदायित्व का कोई सबूत नहीं है जिन्होंने पत्रकारों के साथ दुर्वयवहार किया है। लगातार तीसरे वर्ष, सोमालिया में पत्रकारों की अनसुलझी हत्याओं का दुनिया का सबसे खराब रिकॉर्ड है। रूस में, उच्च प्रोफाइल वाले पत्रकारों की हत्या के लिए किसी जवाबदेही की ओर प्रगति की कमी बनी हुई है। टर्की में, पत्रकारों या स्वतंत्र मीडिया संस्थानों के खिलाफ हमलों करने वाले अपराधियों को अक्सर न्यूनतम दंड प्राप्त होता है। स्वतंत्र मीडिया को लक्षित करने के लिए न्यायिक प्रणाली के इस्तेमाल से इस दंड को बढ़ा दिया गया है। अजरबैजान में, पत्रकारों के खिलाफ दस शारीरिक हमले में से नौ अनसुलझे रह जाते हैं। पत्रकारों के विरुद्ध अपराधों के लिए दंड मुक्ति को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, संयुक्त राज्य अमेरिका विदेशों में एक स्वतंत्र, पेशेवर और स्वतंत्र प्रेस को बढ़ावा देने के लिए, और उन लोगों की जवाबदेही का समर्थन करने के लिए अपने समर्पण को नवीनीकृत करती है जो खतरों, धमकियों और हिंसा के साथ मुक्त प्रेस को कमजोर करेगा। भारत में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध पीड़ितों और गरीब किसानों की आवाज को बुलंद करने वाले अब गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे साहसी पत्रकार गिनती के दिखते हैं जो सत्य की अखण्ड ज्योति को जलाने के लिए सदा जीते हो तथा उसी के लिए शहीद हो जाते हैं। पत्रकारिता जगत का जो पत्रकार सत्य के रूप में ईश्वर को पहचान लेता है तो फिर दुनिया की कोई ताकत उसे सच्चाई को उजागर करने से रोक नहीं सकती है।


गणेश शंकर विद्यार्थी और उनका अखबार 'प्रताप' आज भी पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए आदर्श माने जाते हैं। भगत सिंह, अशफाक उल्ला खां, बालकृष्ण शर्मा नवीन, सोहन लाल द्विवेदी, सनेही, प्रताप नारायण मिश्र जैसे तमाम देशभक्तों ने 'प्रताप प्रेस की 'ज्वाला से राष्ट्र प्रेम को घर-घर तक पहुंचा दिया था। जब विद्यार्थी की कलम चलती थी, तो अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिल जाती थीं। गणेश शंकर विद्यार्थी इतिहास के एक ऐसे कलम के सिपाही का नाम है जिनकी लेखनी से अंग्रेज सरकार हिलती थी। विद्यार्थी हिन्दी भाषा के एक ऐसे रचनाकार थे। गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महापुरूषों का भारत में जन्म लेना प्रत्येक देशवासी का सौभाग्य है। गणेश शंकर 'विद्यार्थी की प्रेरणादायी जीवनी विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए अत्यन्त ही अनुकरणीय है। स्वतंत्रता सेनानी तथा क्रान्तिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी कलम और धारदार लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की लड़ाई में बड़-चढ़ कर भाग लेने वाले में अगली पंक्ति के महान व्यक्ति थे। अंग्रेज हुकूमत अन्याय के खिलाफ उनकी कलम खूब चली जिसने उस समय के नौजवानों के अन्दर जल रही चिनगारी को ज्वाला के रूप में प्रज्जवलित कर दिया था। उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे के बीच भाई-चारा कायम करते हुए हिंसक भीड़ की चपेट में आकर उन्होंने मात्र 41 वर्ष की अवस्था में 25 मार्च 1931 को अपनी इस नाशवान देह को छोड़ दिया था। पत्रकारिता जगत का एक ऐसा मसीहा जिसने इस दंगे के दौरान भी हजारों लोगों की जान बचाई थी और खुद धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़ गया


भारत की आजादी के पूर्व पत्रकारिता ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लोकतंत्र में पत्रकारिता को चौथा स्तम्भ माना जाता है। वर्तमान में चौथे स्तम्भ को कमजोर किया जा रहा है। भटकी हुई पत्रकारिता लोकतंत्र प्रणाली को कमजोर कर रही है। भारत में देखा जा रहा है कि सरकार की नीतियों पर प्रश्न करने वाले साहसी तथा ईमानदार पत्रकारों को अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है। बड़े न्यूज चैनलों तथा समाचार पत्रों को गोदी मीडिया के नाम से पुकारा जा रहा है। अधिकांश बड़े चैनल बड़े उद्योगपतियों द्वारा संचालित हैं। वे पत्रकारिता जगत का व्यवसायिक लाभ की दृष्टि से देखते हैं। इस कारण से आम जनता के जुड़े असली मुददें चर्चा से दूर रहते हैं। देश की अधिकांश जनता दिखावटी सच्चाई का शिकार हो जाती है। सोशल मीडिया तथा वेब मीडिया असली मुददों को अपने सीमित संसाधनों के बूते उठाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैऐसा इसलिए हो पा रहा है क्योंकि ये बड़े उद्योगपतियों द्वारा संचालित नहीं हैं। गणेश शंकर विद्यार्थी जी जैसे कलम के सिपाही के जुनून तथा जज्बे के आधार पर पूरे विश्वास के साथ कह सकते है कि कलम सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व को बदला जा सकता है। इस युग के अनेक क्रांतिकारी तथा जीवन्त पुस्तकों के महान लेखक विश्वात्मा भरत गांधी भी अपनी कलम के सबसे शक्तिशाली हथियार से प्रत्येक वोटर को वोटरशिप दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज पूरे विश्व के लोग सोशल मीडिया के कारण एक-दूसरे से जुड़ गए हैं। लेकिन नागरिकता के 400 साल पुराने कानून अभी भी इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए अब जरूरी हो गया है कि नागरिकता तय करने का अधिकार लोगों को दे दिया जाए, सरकारें यह अधिकार छोड़ दें। साथ ही यह भी जरूरी हो गया है कि नई परिस्थिति में लोगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की और वैश्विक स्तर की नागरिकता पर अंतर्राष्ट्रीय संधि हो। व्यक्ति को किस स्तर की नागरिकता चाहिए, यह व्यक्ति ही तय करें। ठीक उसी तरह, जैसे वह अपना धर्म तय करता है।


विश्वात्मा भरत गांधी का मानना है कि आज उदारीकरण के युग में बाजार और अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के कारण गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसी देश की अधिकांश समस्याओं का समाधान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है। इसलिए नागरिकता को देश के डिब्बे में बंद रखना अब खतरनाक हो गया है। यह साक्षात दिखाई दे रहा है कि जन्मजात रूप से कोई व्यक्ति जाति प्रेमी होता है, कोई दूसरा धर्म प्रेमी होता है, तीसरा क्षेत्र प्रेमी होता है, चौथा देश प्रेमी होता है और पांचवां विश्व प्रेमी होता है। उन्होंने कहा कि यदि ऋग्वेद के रचयिता, वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत के प्रबल समर्थक लोग सारे विश्व से प्रेम करना चाहते हैं तो उनसे केवल देश से प्रेम कराना उनके साथ मानसिक बलात्कार करना है__उन्होंने नागरिकता के पीछे मौजूद राजनीतिक अंधविश्वासों का ऐतिहासिक कारण बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में संपूर्ण विश्व ही राष्ट्र रहा है किंतु ब्रिटेन के शासन के दौरान राष्ट्रवाद के संकीर्ण परिभाषा का जहर भारत में फैलाया गया और आज ब्रिटेन द्वारा फैलाए गए इस जहर को कुछ लोग अमृत मान कर पी रहे हैं। खुद यूरोप, जिसने संकीर्ण राष्ट्रवाद को पैदा किया, उसको प्रचारित-प्रसारित किया, उसी ने खतरा भापकर संकीर्ण राष्ट्रवाद से अपना पिंड छुड़ा लिया और 28 देशों को मिलाकर यूरोपियन यूनियन अर्थात यूरोपिन सरकार बना ली।


वर्तमान में भारत में राजनीति के क्षेत्र में ब्रिटिश राष्ट्रवाद के शिकार लोगों का दुर्भाग्यवश कब्जा हो गया है। जो अपना विश्व इतिहास बनाने के लिए और राजनीतिक सत्ता पर कब्जा बनाए रखने के लिए राजनीतिक अंधविश्वास के आवेग तथा अज्ञानता में देश को दंगा-फसाद और युद्ध के मुंह में झोंकने के लिए आमादा हैं। कुछ गुमराह मीडिया भी इसमें अपनी अज्ञानता के कारण बड़ी भूमिका निभा रहा हैइस युग का सबसे दुर्भाग्य है कि प्रताप जैसे समर्पित प्रिन्ट मीडिया की जगह आज सभी बड़े चैनलों तथा समाचार पत्रों पर उनके मालिक खरबपतियों का कब्जा है। इनकी पहुंच अति आधुनिक तकनीक के कारण हर मस्तिष्क, हर घर तथा हर परिवार में हो गयी है। जो नकली मुद्दे उनके द्वारा दिखाये जाते हैं भोली-भाली जनता उसे ही सच्चाई समझ लेती है। जबकि सच्चाई यह है कि भूख तथा कुपोषण से लाखों की संख्या में लोग मर रहे हैं। संसार की संवेदनहीन सरकारें अपने भूखों की अनदेखी करके परमाणु शस्त्रों की होड़ में लगी हैं। खरबपतियों ने अपनी अकुत पैसों की ताकत से मीडिया को अपना हथियार बनाकर लोकतंत्र को नेतातंत्र में बदल दिया है। गरीब जनता नेताओं को अपनी गरीबी का कारण समझकर कोसती रहती है और चुनाव के द्वारा सरकारे बदल कर अपना गुस्सा निकलती है। जिस आजादी को लाने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महान पत्रकारों तथा स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों ने अपना सब कुछ बलिदान किया था आज वह लोकतंत्र खतरे में है। नेतातंत्र से निकालने का एकमात्र रास्ता प्रत्येक वोटर को वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर ही निकाला जा सकता है। हमें उसी पार्टी को अपना कीमती वोट देना है चाहिए जो वोटरशिप कानून बनाने का वादा अपने घोषणापत्र में करें। मेरी राष्ट्रीयता वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत की प्रबल समर्थक है। मेरा राष्ट्र प्रेम पूरे विश्व को एक देश की तरह देखता है। इसलिए मेरे लिए लड़ने के लिए कोई देश नहीं है। इस युग की सबसे बड़ी मांग वोटरशिप अधिकार कानून का गठन करना है। बिना अमीर-गरीब का भेदभाव किये देश की सरकार को छः हजार रूपये प्रत्येक वोटर को देना चाहिए। भारत को यूरोपियन यूनियन से सबक लेकर शीघ्र पहले चरण में दक्षिण एशियाई देशों की एक सरकार बनानी चाहिए। साथ ही इन देशों के बीच युद्धों से बचे पैसे से प्रत्येक वोटर को वोटरशिप के रूप में पन्द्रह हजार रूपये प्रतिमाह देना चाहिए। दूसरे चरण में दक्षिण-उत्तर एशियाई सरकार बनाकर इस वोटरशिप धनराशि को पच्चीस हजार प्रतिमाह करना चाहिए। अन्तिम तीसरे चरण में विश्व सरकार बनाकर प्रत्येक वोटर को वोटरशिप के रूप में चालीस हजार रूपये देना चाहिए। राजनीतिक आजादी के साथ आर्थिक आजादी लाना ही असली लोकतंत्र है। यहीं हमारी गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारिता जगत के बलिदानियों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।


लेखक का पता- प्रदीप कुमार सिंह, बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2  एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025


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