Skip to main content

‘एक ही छत के नीचे हो . अब सब धर्मों की प्रार्थना' 


आलेख- डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद एवं संस्थापक-प्रबन्धक


सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ


'एक ही छत के नीचे हो . अब सब धर्मों की प्रार्थना' 


अब समय आ गया है जबकि सभी धर्मों के लोगों को एक ही स्थान पर एकत्रित होकर एक ही परमपिता परमात्मा की प्रार्थना करनी चाहिए। अर्थात एक ही छत के नीचे हो-अब सब धर्मों की प्रार्थना हो। अज्ञानता के कारण आज एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में आये अवतारों को अलग-अलग मानने के कारण ही धर्म के नाम पर चारों ओर जमकर दूरियां बढ़ रही है, जबकि सभी अवतार एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में आये हैं। इस प्रकार हम सब एक ही परमात्मा की संतानें हैं। लैटिन भाषा में रिलीजन के मायने जोड़ना होता है। अर्थात जो जोड़े वह धर्म है तथा जो तोड़े वह अधर्म है।


रामायण में तुलसीदास जी ने ठीक ही लिखा है कि 'जब जब होई धर्म की हानि – बाढ़हि असुर, अधम अभिमानी। तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा - हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।। अर्थात जब-जब धर्म की हानि होती है और संसार में असुर, अधर्म एवं अन्यायी प्रवृत्तियों के लोगों की संख्या सज्जनों की तुलना में बढ़ जाने के कारण धरती का संतुलन बिगड़ जाता है, तब-तब परम पिता परमात्मा कृपा करके धरती पर अपने प्रतिनिधियों (अवतारों) कृष्ण, बुद्ध, अब्राहीम, मुसा, महावीर, जररथु, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह आदि को मानवता का मार्गदर्शन कर समाज को सुव्यवस्थित करने के लिए युग-युग में विविध रूपों में भेजते रहे हैं।


युग-युग में आये इन सभी अवतारों को दिव्य ज्ञान एक ही परमपिता परमात्मा से प्राप्त हुआ हैउदाहरण के लिए परमपिता परमात्मा ने 5000 वर्ष पूर्व कृष्ण की आत्मा में गीता के माध्यम से 'न्याय' का दिव्य ज्ञान भेजा। पुनः 2500 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने भगवान बुद्ध की आत्मा में त्रिपटक के माध्यम से 'सम्यक ज्ञान' व समता का दिव्य ज्ञान भेजा। 2000 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने कठोर मानव जीवन को करुणामय जीवन बनाने के लिए प्रभु ईसा मसीह की आत्मा में बाइबिल का ज्ञान भेजा। 1400 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने हज़रत मोहम्मद की आत्मा में कुरान के माध्यम से 'भाईचारे का दिव्य ज्ञान भेजा। 400 वर्ष पूर्व उसी परमपिता परमात्मा ने स्वार्थपूर्ण मानव जीवन को त्याग (सच्चा सौदा) का पाठ पढ़ाने के लिए गुरु नानक देव जी की आत्मा में गुरूग्रंथ साहिब के माध्यम से 'त्याग' का दिव्य ज्ञान भेजा तथा लगभग 200 वर्ष पूर्व उसी परमात्मा ने मानव जीवन में बढ़ती हुई दरियों को समाप्त कर एकता का पाठ मानव जाति को पढ़ाने के लिए बहाउल्लाह की आत्मा में किताबे अकदस का ज्ञान भेजा।


परमात्मा की आत्मा के पुत्र होने के कारण हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हैं। उस परमपिता परमात्मा की प्रार्थना हम मंदिर में करें, मस्जिद में करें, गिरजाघर में करें या गुरुद्वारे में करें, और चाहे किसी भी भाषा में करें, हमारी प्रार्थनाओं को सुनने वाला ईश्वर एक ही है। अलग-अलग स्थानों, भाषाओं, वेश-भूषाओं में परमपिता परमात्मा को याद करने से धरती पर यह अज्ञान फैल गया है कि धर्म एक नहीं अनेक हैं। परमपिता परमात्मा की प्रार्थना करने के लिए किसी विशेष प्रकार की वेश-भूषा, भाषा, जाति-धर्म, स्थान आदि से कोई लेना-देना नहीं है। गीता में जब भगवान श्रीकृष्ण से उनके शिष्य अर्जुन ने पूछा कि भगवान! आपका धर्म क्या है?


गीता में जब भगवान श्रीकृष्ण से उनके शिष्य अर्जुन ने पूछा कि भगवान! आपका धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को बताया कि मैं सारी सृष्टि का सृजनहार हूँ। इसलिए मैं सारी सृष्टि के सभी प्राणी मात्र से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता हूँ। इस प्रकार मेरा धर्म अर्थात कर्तव्य सारी सृष्टि के प्राणी मात्र से प्रेम करना है। इसके बाद अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन् मेरा धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मेरी आत्मा के पुत्र हो। इसलिए मेरा जो धर्म अर्थात कर्तव्य है वही तुम्हारा भी धर्म अर्थात कर्तव्य है। अतः सारी मानव जाति की भलाई करना ही तुम्हारा भी धर्म अर्थात कर्तव्य हैभगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इस प्रकार तेरा और मेरा दोनों का धर्म एक ही है।


इस प्रकार परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में आये किसी भी महान अवतार ने कोई अलग धर्म नहीं दिया है। जिस प्रकार से परमपिता परमात्मा शाश्वत और अपरिवर्तनीय है उसी प्रकार से उसका धर्म भी शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। परमपिता परमात्मा का जो धर्म है वही धर्म उसकी सभी संतानों का भी धर्म है। मनुष्य का सदैव से एक ही धर्म (कर्तव्य) रहा है – प्रभु इच्छाओं को जानना तथा उन पर चलना। पवित्र पुस्तकों गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस आदि में एक ही परमपिता परमात्मा के द्वारा भेजी गई न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग एवं हृदयों की एकता की शिक्षाओं को जानना तथा उसके अनुसार संसार में रहकर पवित्र भावना से प्रभु की इच्छाओं और आज्ञाओं के अनुसार कार्य करना ही हर प्राणी का धर्म है। इस प्रकार प्रभु की इच्छाओं को जानकर तथा उनके अनुसार कार्य करने के अलावा किसी भी प्राणी का और कोई भी दूसरा धर्म नहीं हैआज धर्म के नाम पर बढ़ती हुई दूरियाँ सिर्फ अज्ञानता के कारण है। जबकि सभी धर्मों का उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति के हृदय में प्रेम व एकता की भावना को बढ़ाकर सारी पृथ्वी पर आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना करना है। सभी धर्मो का स्रोत एक ही परमपिता परमात्मा है और हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हैं। धर्म के नाम पर होने वाली दूरियों का कारण धर्म के प्रति लोगों का अज्ञान है। जब हम सभी एक ही परमात्मा की संतानें हैं तो हमारे धर्म अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? इसलिए स्कूलों में बच्चों एवं टीचर्स के द्वारा की जाने वाली सामूहिक प्रार्थना की तरह ही समाज में भी सभी धर्मों, जातियों एवं सम्प्रदायों के लोगों को एक ही जगह पर इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से एक ही परमपिता परमात्मा की प्रार्थना करनी चाहिए और यही प्रभु-प्रार्थना करने का सबसे सही तरीका भी है। अर्थात एक ही छत के नीचे हो-अब सब धर्मों की प्रार्थना' हो।


Comments

Popular posts from this blog

आत्मा अजर अमर है! मृत्यु के बाद का जीवन आनन्द एवं हर्षदायी होता है!

-आध्यात्मिक लेख  आत्मा अजर अमर है! मृत्यु के बाद का जीवन आनन्द एवं हर्षदायी होता है! (1) मृत्यु के बाद शरीर मिट्टी में तथा आत्मा ईश्वरीय लोक में चली जाती है :विश्व के सभी महान धर्म हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम, जैन, पारसी, सिख, बहाई हमें बताते हैं कि आत्मा और शरीर में एक अत्यन्त विशेष सम्बन्ध होता है इन दोनों के मिलने से ही मानव की संरचना होती है। आत्मा और शरीर का यह सम्बन्ध केवल एक नाशवान जीवन की अवधि तक ही सीमित रहता है। जब यह समाप्त हो जाता है तो दोनों अपने-अपने उद्गम स्थान को वापस चले जाते हैं, शरीर मिट्टी में मिल जाता है और आत्मा ईश्वर के आध्यात्मिक लोक में। आत्मा आध्यात्मिक लोक से निकली हुई, ईश्वर की छवि से सृजित होकर दिव्य गुणों और स्वर्गिक विशेषताओं को धारण करने की क्षमता लिए हुए शरीर से अलग होने के बाद शाश्वत रूप से प्रगति की ओर बढ़ती रहती है। (2) सृजनहार से पुनर्मिलन दुःख या डर का नहीं वरन् आनन्द के क्षण है : (2) सृजनहार से पुनर्मिलन दुःख या डर का नहीं वरन् आनन्द के क्षण है :हम आत्मा को एक पक्षी के रूप में तथा मानव शरीर को एक पिजड़े के समान मान सकते है। इस संसार में रहते हुए

लखनऊ में स्मारक समिति कर्मचारियों का जोरदार प्रदर्शन

लखनऊ में स्मारक समिति कर्मचारियों का जोरदार प्रदर्शन स्मारक कर्मचारियों ने किया कार्य बहिष्कार कर्मचारियों ने विधानसभा घेराव का किया ऐलान जानिए किन मांगों को लेकर चल रहा है प्रदर्शन लखनऊ 2 जनवरी 2024 लखनऊ में स्मारक समिति कर्मचारियों का जोरदार प्रदर्शन स्मारक कर्मचारियों ने किया कार्य बहिष्कार और कर्मचारियों ने विधानसभा घेराव का भी है किया ऐलान इनकी मांगे इस प्रकार है पुनरीक्षित वेतनमान-5200 से 20200 ग्रेड पे- 1800 2- स्थायीकरण व पदोन्नति (ए.सी.पी. का लाभ), सा वेतन चिकित्सा अवकाश, मृत आश्रित परिवार को सेवा का लाभ।, सी.पी. एफ, खाता खोलना।,  दीपावली बोनस ।

भगवान चित्रगुप्त व्रत कथा पुस्तक का भव्य विमोचन

भगवान चित्रगुप्त व्रत कथा पुस्तक का भव्य विमोचन लखनऊ, जुलाई 2023, अयोध्या के श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर में भगवान चित्रगुप्त व्रत कथा पुस्तक का भव्य विमोचन  किया गया। बलदाऊजी द्वारा संकलित तथा सावी पब्लिकेशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का विमोचन संत शिरोमणी श्री रमेश भाई शुक्ल द्वारा किया गया जिसमे आदरणीय वेद के शोधक श्री जगदानंद झा  जी भी उपस्थित रहै उन्होने चित्रगुप्त भगवान् पर व्यापक चर्चा की।  इस  अवसर पर कई संस्था प्रमुखो ने श्री बलदाऊ जी श्रीवास्तव को शाल पहना कर सम्मानित किया जिसमे जेo बीo चित्रगुप्त मंदिर ट्रस्ट,  के अध्यक्ष श्री दीपक कुमार श्रीवास्तव, महामंत्री अमित श्रीवास्तव कोषाध्यक्ष अनूप श्रीवास्तव ,कयस्थ संध अन्तर्राष्ट्रीय के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश खरे, अ.भा.का.म के प्रदेश अध्यक्ष श्री उमेश कुमार जी एवं चित्रांश महासभा के कार्वाहक अध्यक्ष श्री संजीव वर्मा जी के अतिरिक्त अयोध्या नगर के कई सभासद भी सम्मान मे उपस्थित रहे।  कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष दीपक श्रीवास्तव जी ने की एवं समापन महिला अध्यक्ष श्री मती प्रमिला श्रीवास्तव द्वारा किया गया। कार्यक्रम